खुली खिड़की से आती ठंडी हवा प्रीतम के कुछ कुछ सफेद हुए बालों को धीरे धीरे सहेला रही थी। 56 साल का प्रीतम अपनी कुर्सी पर बैठा बैठा कुछ सोच रहा था ।बाहर से आता शोर मानो उसके कानो तक पहुंचता ही ना हो ,बाहर से आते शोर में उसे अचानक से अपना नाम सुनाई दिया, प्रीतम ने पीछे मुड़कर दरवाजे की तरफ ऐसे देखा मानो किसी योगी की तपस्या किसी ने भंग की हो।
पीछे मुड़कर देखा तो उसका दोस्त विष्णु खड़ा था। वो अंदर आते हुए बोला अरे भाई क्या कर रहा हैं में कबसे आवाज दिए जा रहा हु और तू है कि सुनता ही नहीं ! प्रीतम ने मुस्कुरा कर कहा अरे विष्णु आजा तेरी ही राह देख रहा था मेंअच्छा मेरी राह देख रहा था ? विष्णु ने हंसते हुए कहा। जैसे ही वो कुर्सी पर बैठा एक तेज हवा के झोंके ने टेबल पर रखी किताब के पाने पलट दिए ! विष्णु ने कहा चल भाई छत पे चलते हैं,प्रीतम ने हामी भरी और दोनों सीढ़ीया चढ़के छत पर चले गए।शाम तक हसी ठहाके, गप शप करते रहे।
दूसरे दिन प्रीतम टहलने के इरादे से घर से बाहर निकला । थोड़ा चल कर वो एक पार्क में जाकर एक बेंच पर बैठ गया। चारों तरफ चहल पहल थी कुछ बच्चे खेल रहे थे कुछ बुजुर्ग बैठे थे कुछ यूं ही टहल रहे थे फिर भी मानो एक सुकून भरी शांति पूरे पार्क में छाई हुई थी।वो आंखें बंद कर के शांति का आनंद ले ही रहा था तभी उसके कानो में एक आवाज गूंजी नीलिमा ओ नीलिमा ! वो आवाज उसके कानो से होती हुई सीधे दिल तक जा पहुंची। वो इधर उधर देखने लगा पर कोई परिचित चेहरा नजर ना आया या यू कहिए जिस चेहरे को उसे देखना था वो नजर न आया। उसका मन भारी सा हो गया,वो जल्दी से घर के लिए निकल गया और अपने कमरे में जाकर कुछ ढूंढने लगा।अपनी अलमारी से उसने पुरानी सी दिखने वाली फोटो एल्बम निकाली साथ में कुछ चीजें भी थी।ये सब विष्णु और उसका दूसरा दोस्त पुनीत बड़े गौर से देख रहे थे।
पुनीत जो अभी कुछ महीने पहले ही दोस्त बना था,वो उसी सोसाइटी में रहेता था। प्रीतम वो सारी चीजें बड़े प्यार से देख रहा था फोटो एल्बम के पन्ने पलटते पलटते उसकी आंखों में नमी छा गई।ये देख पुनीत बोला ये प्रीतम पागल हो गया है।
विष्णु ने पुनीत की ओर देखा और एक हल्की सी मुस्कान दी। क्योंकि विष्णु बचपन से प्रीतम के साथ था उसके हर काम में साथ खड़ा रहा और उसकी हर कहानी का हिस्सा रहा हैं। उसका बचपन,उसकी जवानी,ओर आम बुढ़ापे की ओर ढलती उम्र में भी दोनों साथ ही थे।एक दूसरे का सहारा,ख्याल रखने वाले,साथ देने वाले एकदूसरे के लिए वो दोनों ही है।
ये सारे विचार झटकते हुए विष्णु कमरे के अंदर गया और प्रीतम से कहा क्या भाई फिर से तू यही सब लेके बैठ गया ? प्रीतम ने विष्णु की और बड़े प्यार से देखा और उसका कंधा थपथपाया। तीनों ने बैठ कर चाय नाश्ता खतम किया।पुनीत ने पूछा अरे भाई वो एल्बम किसकी है वो तो बताओ!प्रीतम ने बात टालने के अंदाज से कहा अरे छोड़ो वो तो जवानी के दौर की है और अब तो हम बुढ़ापे के करीब जा रहे हैं,ये कहते हुए उसकी आँखें छलक गई और अपने एल्बम वाले जवानी के दौर में पहुंच गया।
वो कॉलेज के दिन थे,प्रीतम ओर विष्णु प्रीतम की बाइक से कॉलेज आते थे। कॉलेज के होनहार स्टूडेंट्स में प्रीतम का नाम सबसे ऊपर आता था, कॉलेज के सभी प्रोफेसरो का चहीता भी था। प्रीतम के साथ साथ विष्णु भी सब का चहीता बन गया था।पूरे कॉलेज में प्रीतम ओर विष्णु की दोस्ती की तारीफ होती थी।
कॉलेज का सेकेण्ड ईयर था,रोज की तरह प्रीतम ओर विष्णु अपनी बाइक से कॉलेज पहुंचे,वो अभी क्लास में जा ही रहे थे कि कारिडोर में प्रीतम से एक लड़की टकराई,उस लड़की के हाथ में पकड़ी हुई पेन की इंक विष्णु के शर्ट पर लग गए।अपनी शर्ट गंदी देख विष्णु ने लड़की को डांटना शुरू किया और प्रीतम पुतले की तरह उस लड़की के चहेरे को देखता रहा।उसकी झिल सी आंखों ने मानो प्रीतम डूब सा गया। उसके गोरे से गाल,बड़ी बड़ी आंखे, गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होंठ और मासूम सा चेहरा देखकर प्रीतम तो मंत्रमुग्ध ही हो गया।